उत्तरायणी के वो दिन Uttarayani newsletter

26 साल पुरानी बात है. तब उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र के कुछेक नाम भारतीय राजनीति में बड़े पदों पर आसीन थे, कुछ नाम फ़ौज और सिविल सेवाओं में भी अपना स्थान बना चुके थे लेकिन नौकरशाही में अधिकतर लोग जो बड़े पदों पर पहुँच रहे थे, अपनी पर्वतीय पहचान छिपाते फिरते थे.

यह 1993 था और अभी उत्तराखंड बनने में 7 साल लगने थे.

एक युवक जो पहाड़ियों के इस हीन-भाव से ग्रसित चरित्र से आहत था, उसने अपनी भावनाओं को अपने पहाड़ी बॉस से साझा किया और फिर शुरू हुई बातें कि परिवार बढ़ता गया - एक से दो, दो से पांच, फिर दस-बारह और फिर अस्सी-नब्बे-सौ.

दिल्ली की उत्तरायणी संस्था के इस काल में न आंचलिकता थी, न कोई गुट था और न आडम्बर था. चर्चायें चाय पर या खाने पर होती थीं जिनका पैसा वहीं पर बंट जाता था. जब बड़े आयोजन होते थे तो सब मिलकर करते थे, और बहुत इनफॉर्मल तरीके से उनका संयोजन होता था. परिवार आते थे और संयोजन की कमजोरियों को नज़रअंदाज़ करते हुए अपने पहाड़ी होने के गर्व को कुछ बढ़ा कर लौट जाते थे.

इस दौर की याद दिलाता है यह पहला  newsletter. Newsletter छपवाने के लिए न पैसे थे और न समय. सो, हाथ से मुखपृष्ठ बनाकर उसपर सामग्री टाइप कर ली गयी. चूँकि खुद की पब्लिसिटी का चलन नहीं था, Newsletter पर किसी सम्पादक या संयोजक का नाम नहीं छपा.

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Comments

Dr. VK Bahuguna said…
Great write up. keep the flag flying